प्रवासी मजदूरों का मामला / सुप्रीम कोर्ट ने कहा- देशभर से मजदूरों के लौटने पर नजर रखना या उसे रोकना नामुमकिन, सरकार ही इस पर जरूरी कदम उठाए
तीन जजों की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा- क्या मजदूरों को सड़क से जाने से रोका जा सकता है? मेहता ने बताया- राज्य सरकारें मजदूरों को भेजने की व्यवस्था कर रहे हैं, लोग अपनी बारी का इंतजार करने के लिए तैयार नहीं
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि देश के कई हिस्सों से अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों पर नजर रखना या उसे रोकना नामुमकिन है। बेहतर होगा कि सरकार इस पर जरूरी कदम उठाए। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मजदूरों की घर वापसी के लिए ट्रांसपोर्टेशन मुहैया कराया गया है, उन्हें अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए।
कोरोना महामारी के चलते जारी लॉकडाउन में देश के कई हिस्सों से मजदूरों का घरों को लौटना जारी है। वे सड़कों और पटरियों के किनारे-किनारे पैदल यात्रा कर रहे हैं। ऐसे में कई हादसे भी सामने आए हैं।
याचिका में ट्रैक पर मजदूरों की मौत का हवाला दिया
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अलख आलोक श्रीवास्तव की तरफ से याचिका दायर की गई थी। इसमें मांग की गई थी कि केंद्र सभी डीएम को निर्देश दे कि वे प्रवासी मजदूरों की पहचान करें और उनके लिए रहना-खाना उपलब्ध कराएं। साथ ही इलाके तक मुफ्त ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था करें। याचिका में हाल ही में औरंगाबाद में रेलवे ट्रैक पर मारे गए 16 मजदूरों का भी हवाला दिया गया था।
लोगों को कैसे रोकें
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुआई वाली 3 जजों की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या मजदूरों को सड़क से जाने से रोका जा सकता है? इस पर मेहता ने कहा कि राज्य सरकारें मजदूरों को उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था कर रही हैं। ट्रेनें चलाई जा चुकी हैं। इसके बावजूद भी लोग निकल रहे हैं। वे इंतजार करने लिए तैयार नहीं हैं। उन्हें रोकने के लिए लिए ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, इसके विरोध में हालात बिगड़ने का खतरा है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई सुनवाई में मेहता ने यह दलील भी दी कि हर राज्य सरकार के बीच यह समझौता हुआ है कि हर मजदूर को उसके नियत स्थान तक भेजा जाएगा। बेंच ने कहा कि हम लोगों को कैसे रोक सकते है? राज्य सरकारों को भी इस पर जरूरी कदम उठाने चाहिए।