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मुसीबत में महिलाएं / भारत में लॉकडाउन के चलते पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने नौकरियां गंवाईं, अरैंज मैरिज में 30 फीसदी का इजाफा हुआ

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भारत में कोरोनावायरस के चलते 25 मार्च को लॉकडाउन लागू हुआ। अप्रैल तक 12 करोड़ भारतीय अपनी नौकरी गंवा चुके थे। मई में हुई एक नेशनल एम्पलॉयमेंट स्टडी के मुताबिक पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा नौकरियां खोई हैं। नौकरीपेशा भारतीयों में भविष्य को लेकर भी महिलाएं ही सबसे ज्यादा चिंतित हैं।

ऐसी ही एक कहानी भारत की 21 साल की सीमा मुंडा की है। सीमा के पैरेंट्स चाहते थे कि बेटी जल्दी शादी कर ले, लेकिन सीमा नर्स बनना चाहती थीं। उन्हें लगता था कि नौकरी केवल भाई के लिए क्यों है। पिछली गर्मियों में सीमा घर से झूठ बोलकर बैंगलुरू आ गईं। यहां उन्हें एक शर्ट सिलने की फैक्ट्री में काम मिला। सीमा बताती हैं कि इस नौकरी ने उन्हें आजादी दी, लेकिन लॉकडाउन ने उनसे यह खुशी छीन ली।

भारत बुरे आर्थिक दौर में : अरैंज मैरिज की संख्या बढ़ी

  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान भारत में अरैंज मैरिज में इजाफा हुआ है। परिवार इन शादियों को बेटी के भविष्य की सिक्योरिटी के तौर पर देखते हैं। भारत की कई बड़ी मैट्रिमोनी वेबसाइट्स ने पाया है कि लॉकडाउन के बाद शादी के रजिस्ट्रेशन्स 30% बढ़े हैं।
  • भारत में महिलाओं की शादी की वजह से नौकरी नहीं जाती है, लेकिन इससे उनकी आजादी में फर्क पड़ता है। महिलाओं का गांव से बाहर जाना और नौकरी करना मुश्किल हो जाता है।
  • येल में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर रोहिणी पांडेय भारत में महिलाओं के रोजगार पैटर्न पर रिसर्च कर रही हैं। रोहिणी बताती हैं कि दोबारा काम पाने के लिए प्रवासी महिला मजदूरों को संघर्ष करना पड़ सकता है। कई महिलाएं अपने माता-पिता से जल्दी शादी न करने और नौकरी करने गांव से बाहर जाने की परमिशन जैसी चुनौतियों का सामना करती हैं।

भारत में महिला श्रमिकों का ग्राफ नीचे आया

  • भारत में 2005 से 2018 के बीच महिला श्रमिकों की साझेदारी 32 से घटकर 21 प्रतिशत पर आ गई है। यह दुनिया के लोअर रेट्स में से एक है। हालांकि इस दौरान पुरुषों का आंकड़ा भी गिरा है, लेकिन महिलाओं की तुलना में यह काफी कम है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इसका एक कारण संस्कृति भी है, क्योंकि भारत में इकोनॉमी बढ़ गई है और लोग महिलाओं को घर में रख पा रहे हैं। ऐसे में यह एक सोशल स्टेटस बन गया है।
  • कुछ अनुमानों के मुताबिक भारत की इकोनॉमी इस साल 5 प्रतिशत तक गिरेगी। शायद यह ब्रिटेन से आजादी के बाद सबसे बुरी गिरावट होगी। पॉलिटिकल साइंटिस्ट स्वर्णा राजगोपालन इस बात को लेकर काफी चिंतित हैं। वह कहती हैं कि हम आज भी पुरुष को परिवार में मुख्य कमाने वाला समझते हैं। अगर यह बात हमें दूसरों के जिम्मे करना पड़ा तो महिलाएं अपनी नौकरी खो देंगी। फिर इससे फर्क नहीं पड़ता कि उन्हें नौकरी की कितनी जरूरत थी या वे कितनी मेहनत करती हैं।

अनलॉक फेज में दोबारा आजादी पाना होगा मुश्किल

  • भले ही भारत में आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए लॉकडाउन हटने लगा है, लेकिन कई महिलाओं को अपनी आर्थिक आजादी खोने का डर सता रहा है। उन्हें लग रहा है कि यह मौका दोबारा मिलेगा या नहीं। सीमा बताती हैं कि जब वे पिछले साल जुलाई में बैंगलुरू पहुंची थीं तो उन्हें अपने सपनों को खोलने की चाबी मिल गई थी। शुरुआत में उनके माता-पिता काफी नाराज थे, लेकिन उन्होंने अपनी कमाई से कुछ पैसे घर भेजकर सबको शांत किया।
  • लॉकडाउन होने से सीमा का काम और पैसा दोनों बंद हो गया। उन्हें मजबूरी में हॉस्टल से निकलकर स्कूल में रहना पड़ा। मई के आखिर में जब देश में ट्रांसपोर्टेशन फिर से शुरू हुआ, तो सीमा बचे हुए पैसे लेकर झारखंड लौट गईं। सीमा कहती हैं कि अब मेरा परिवार मुझे वापस नहीं आने देगा, मैं शादी नहीं करना चाहती हूं। उनके साथ सफर करने वाली एक वर्कर ने बताया की सीमा तीन दिन की यात्रा के दौरान चेहरा छिपा कर रो रही थीं।

घर पहुंचने के बाद कई महिलाओं ने फोन नहीं उठाया
प्रवासी मजदूरों की मदद करने वाले एनजीओ के चेयरमैन हेमंत कुमार बताते हैं कि अपने गांव वापस पहुंचने के बाद कुछ ही महिलाओं ने उनका फोन उठाया। कुछ ने उन्हें कहा कि परिवार वालों ने वापस नौकरी पर जाने के लिए मना कर दिया है।

अनुमान- कामकाजी महिलाओं को होगा ज्यादा नुकसान

इकोनॉमिस्ट्स ने अनुमान लगाया है कि यह दौर काम करने वाली महिलाओं के लिए भयानक रुकावटें लाएगा। हाल ही में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट बताती है कि महामारी ने न केवल लैंगिक असमानता बढ़ाई है, बल्कि दशकों बाद मिली काम की कामयाबियों को भी चोट पहुंचाई है।

महिलाओं को काम खोने का ज्यादा खतरा

इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक 35 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में 41 फीसदी महिलाएं महामारी के दौरान काम खोने के रिस्क वाले सेक्टर्स में काम कर रहीं थीं। जब पश्चिम अफ्रीका से इबोला के बाद क्वारैंटाइन उपाय हटाए गए, तो महिलाओं की जीवनस्तर सुधारने की रफ्तार पुरुषों के मुकाबले काफी कम थी। महिलाओं को फिर से लोन लेकर बिजनेस शुरू करने में काफी वक्त लगा।

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