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किन तीन कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं? किस कानून को लेकर क्या है किसानों की शंका और उस पर क्या है सरकार का दावा?

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संसद ने खेती से जुड़े तीन महत्वपूर्ण सुधार विधेयकों को मंजूरी दे दी है। इसे लेकर किसानों ने शुक्रवार को आंदोलन किया। पंजाब और हरियाणा में सबसे ज्यादा असर देखने को मिला। सुबह से ही किसान रेलवे ट्रैक पर आकर बैठ गए और कई जगहों पर उन्होंने विरोध-प्रदर्शन किया। आइए जानते हैं, क्या हैं यह तीन विधेयक? इन पर क्या है किसानों की शंका? और क्या कहती है सरकार?

1. कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020

  • शंका: न्यूनतम मूल्य समर्थन (एमएसपी) प्रणाली समाप्त हो जाएगी। किसान यदि मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां खत्म हो जाएंगी। ई-नाम जैसे सरकारी ई ट्रेडिंग पोर्टल का क्या होगा?
  • सरकार का दावाः एमएसपी पहले की तरह जारी रहेगी। एमएसपी पर किसान अपनी उपज बेच सकेंगे। इस दिशा में हाल ही में सरकार ने रबी की एमएसपी भी घोषित कर दी है। मंडियां खत्म नहीं होंगी, बल्कि वहां भी पहले की तरह ही कारोबार होता रहेगा। इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा। मंडियों में ई-नाम ट्रेडिंग जारी रहेगी। इलेक्ट्रानिक प्लेटफॉर्मों पर एग्री प्रोडक्ट्स का कारोबार बढ़ेगा। पारदर्शिता के साथ समय की बचत होगी।

2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020

  • शंकाः कॉन्ट्रेक्ट करने में किसानों का पक्ष कमजोर होगा,वे कीमत निर्धारित नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान कैसे कांट्रेक्ट फार्मिंग करेंगे? प्रायोजक उनसे दूरी बना सकते हैं। विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।
  • सरकार का दावाः कॉन्ट्रेक्ट करना है या नहीं, इसमें किसान को पूरी आजादी रहेगी। वह अपनी इच्छानुसार दाम तय कर फसल बेचेगा। अधिक से अधिक 3 दिन में पेमेंट मिलेगा। देश में 10 हजार फार्मर्स प्रोड्यूसर ग्रुप्स (एफपीओ) बन रहे हैं। ये एफपीओ छोटे किसानों को जोड़कर फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में काम करेंगे। कॉन्ट्रेक्ट के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। खरीदार उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा। विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी जाने की जरूरत नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद निपटाया जाएगा।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020

  • शंकाः बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेगी। उनका दखल बढ़ेगा। इससे कालाबाजारी बढ़ सकती है।
  • सरकार का दावाः निजी निवेशकों को उनके कारोबार के ऑपरेशन में बहुत ज्यादा नियमों की वजह से दखल महसूस नहीं होगा। इससे कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ेगा। कोल्ड स्टोरेज एवं फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ने से किसानों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर मिलेगा। किसान की फसल खराब होने की आंशका दूर होगी। वह आलू-प्याज जैसी फसलें निश्चिंत होकर उगा सकेगा। एक सीमा से ज्यादा कीमतें बढ़ने पर सरकार के पास उस पर काबू करने की शक्तियां तो रहेंगी ही। इंस्पेक्टर राज खत्म होगा और भ्रष्टाचार भी।

 

तीन राज्यों से किसान आंदोलन LIVE:पंजाब में दिनभर बाजार बंद रहे, दिल्ली बॉर्डर पर जल्दी ही वापस लौट गए प्रदर्शनकारी, योगेंद्र यादव ने कहा- संसद का काम खत्म, सड़क का शुरू

  • आंदोलन का ज्यादा असर पंजाब और हरियाणा में दिखा, पंजाब के किसान रेलवे ट्रैक पर बैठ गए, बाजार दिनभर बंद रहा
  • मुजफ्फरनगर जिले में बंद का मिला जुला असर देखने को मिला, वहीं दिल्ली बॉर्डर पर दोपहर बाद किसान अपने घर के लिए लौट गए

हाल ही में सदन से पास हुए किसान बिल को लेकर देशभर में शुक्रवार को किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया। पंजाब और हरियाणा में बंद का सबसे ज्यादा असर देखने को मिला। किसान सुबह ही सड़क और रेलवे ट्रैक पर बैठ गए, जगह-जगह चक्का जाम और विरोध प्रदर्शन किया। यहां पूरे दिन बाजार बंद रहा। दिल्ली बॉर्डर और पश्चिमी यूपी में किसान प्रदर्शन के लिए सड़कों पर तो निकले लेकिन बंद का मिला जुला ही असर रहा।

पंजाब के मानसा में किसानों के आंदोलन का असर साफ दिखता है। आज पूरे शहर का बाज़ार बंद है सिर्फ केमिस्ट की कुछ दुकानें ही खुली हैं।
पंजाब के मानसा में किसानों के आंदोलन का असर साफ दिखता है। आज पूरे शहर का बाज़ार बंद है सिर्फ केमिस्ट की कुछ दुकानें ही खुली हैं।

 

पंजाब के मानसा शहर में भारत बंद का असर साफ नजर आ रहा है। सिर्फ सड़कें ही नहीं रेल की पटरियां तक किसानों के आक्रोश की गवाही दे रही हैं। पंजाब के अलग-अलग 31 किसान संगठनों ने आज बंद का आह्वान किया है। इसमें सबसे प्रमुख भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) जो इस आंदोलन का यहां नेतृत्व कर रही है।

किसानों ने कल से ही रेलवे ट्रैक पर कब्जा किया हुआ है। सारी ट्रेन बंद कर दी गई हैं।
किसानों ने कल से ही रेलवे ट्रैक पर कब्जा किया हुआ है। सारी ट्रेन बंद कर दी गई हैं।

पंजाब के कई लोक कलाकारों ने भी किसानों का समर्थन किया है। जहां दलजीत दोसांज जैसे बड़े गायकों ने किसानों के समर्थन में सोशल मीडिया पर आवाज उठाई है वहीं, सिद्धू मूसेवाला जैसे गायक किसानों के समर्थन में सड़क तक उतर आए हैं।

किसानों को सिर्फ लेफ्ट पार्टियों का ही नहीं बल्कि अकाली दल जैसी राइट विंग पार्टियों का भी समर्थन मिल रहा है। पंजाब में भाजपा के अलावा अन्य सभी पार्टियों ने किसानों की मांगों का समर्थन किया है। पंजाब बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी किसानों के समर्थन में आंदोलन में शामिल हुए हैं।

पंजाब-सिरसा हाईवे पूरी तरह से जाम है। हजारों की संख्या में किसान यहां इक्ट्ठा हुए हैं। इन किसानों को पंजाबी लोक कलाकारों का भी समर्थन मिल रहा है। अभी-अभी पंजाबी कलाकार सिद्धू मूसेवाला यहां किसानों के समर्थन के लिए आए हुए हैं। वे किसानों को संबोधित कर रहे हैं।

केंद्र सरकार में सहयोगी अकाली दल खुद ही सड़कें जाम तो कर रही है लेकिन किसानों का उन पर विश्वास अब कम ही दिखता है।
केंद्र सरकार में सहयोगी अकाली दल खुद ही सड़कें जाम तो कर रही है लेकिन किसानों का उन पर विश्वास अब कम ही दिखता है।

मानसा जिले के कैंचियां इलाके में अकाली दल ने ही रोड ब्लॉक की है। अकाली दल के झंडे तले कम ही किसान नजर आ रहे हैं। किसानों की सबसे ज्यादा संख्या भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) के जत्थों में ही दिखाई दे रही है। ज्यादातर किसान राजनीतिक दलों को अपने प्रदर्शनों से दूर रखते हुए सिर्फ किसान यूनियनों के झंडों के साथ ही सड़कों पर हैं।

शाम पांच बजे के बाद प्रदर्शनकारी अपने घर के लिए निकल गए। कुछ दुकानें अब खुलने लगी हैं लेकिन अधिकांश बाजार अब तक बंद है। किसान यूनियन के प्रतिनिधियों का कहना है कि बंद का उनका आह्वान पूरी तरह सफल रहा और सिर्फ किसानों का ही नहीं बल्कि हर वर्ग का समर्थन उन्हें इस बंद के दौरान मिला।

संसद का काम खत्म, सड़क का काम शुरू: योगेंद्र यादव

यहां किसानों के साथ विरोध प्रदर्शन में स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव भी शामिल हुए। भास्कर रिपोर्टर राहुल कोटियाल के साथ विशेष बातचीत में योगेंद्र यादव ने कहा कि केंद्रीय कृषि मंत्री कहते हैं कि हमारे दरवाजे किसानों के लिए हमेशा खुले हैं लेकिन, उन्होंने तो विधेयक लाकर पहले ही ताला लगा दिया। उन्होंने बिल को पास करने से पहले किसी किसान बात नहीं की, यहां तक कि अपने सहयोगी अकाली दल और आरएसएस से जुड़े किसान संगठनों से भी बात नहीं की। क्योंकि इन्हें पता था कि इनका कोई साथ नहीं देगा, ये काम चोर दरवाजे से ही किया जा सकता है।

आगे की रणनीति को लेकर योगेंद्र यादव ने कहा कि किसान जानता है कि सरकार का अहंकार कैसे तोड़ा जाता है। अब तो कानून बन गया, संसद का काम खत्म हो गया। अब सड़क का काम शुरू हो गया है, सड़क पर विरोध होगा और सरकार को घुटने पर लाएंगे। 27 सितंबर को हम इसको लेकर बैठक करने वाले हैं।

 

दिल्ली बॉर्डर से लाइव रिपोर्ट…

दिल्ली यूपी सीमा बॉर्डर पर सुबह से ही पुलिस की सरगर्मी देखी गई। कृषि बिल के विरोध में भारतीय किसान यूनियन की तरफ से यहां प्रदर्शन बुलाया गया है। दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर नोएडा गेट के आगे दोनों सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में प्रदर्शनकारी जमा हैं। वे लगातार नारेबाजी कर रहे हैं। इसे देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

नोएडा के आसपास के इलाकों से ट्रेक्टर-ट्रॉलियों में सवार होकर किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
नोएडा के आसपास के इलाकों से ट्रेक्टर-ट्रॉलियों में सवार होकर किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

दिल्ली-नोएडा सड़क पर दोपहर की तीखी धूप में प्रदर्शनकारी किसान बीच सड़क पर बैठे हुए हैं। नोएडा के आसपास के इलाकों से ट्रेक्टर-ट्रॉलियों में सवार होकर आए करीब पांच सौ किसान ‘मोदी सरकार मुर्दाबाद’, ‘किसान बिल वापिस लो… जैसे नारे लगा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों में शामिल एक युवक ने कहा , ‘हम किसानों ने मोदी सरकार को वोट दिया। सरकार बनवाई और अब यही मोदी सरकार किसानों को बर्बाद करने के लिए काम कर रही है।

मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। पुलिस बल के साथ-साथ वाटर कैनन की भी व्यवस्था प्रशासन ने की है।
मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। पुलिस बल के साथ-साथ वाटर कैनन की भी व्यवस्था प्रशासन ने की है।
दिल्ली-नोएडा बॉर्डर किसानों ने सड़क जाम कर दिया है। वे नारेबाजी कर रहे हैं।
दिल्ली-नोएडा बॉर्डर किसानों ने सड़क जाम कर दिया है। वे नारेबाजी कर रहे हैं।

जेवर से यहां आए हरिनारायण कहते हैं, ‘सरकार को ये कानून बनाना चाहिए कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद नहीं होगी। इतना करने में क्या जाता है? ये बड़े-बड़े व्यापारी हम किसानों से सस्ते पर खरीद लेंगे। हमने इस देश को पाला है और आज हम किसान ही सड़क पर हैं।’

दोपहर बाद के 2 बजे हैं। अब यहां से प्रदर्शन करने वाले किसान वापस लौट रहे हैं। दिल्ली-नोएडा हाईवे जो अब तक बंद था वो फिर से शुरू हो गया है। दिल्ली पुलिस भी यहां से लौट रही है।
दोपहर बाद के 2 बजे हैं। अब यहां से प्रदर्शन करने वाले किसान वापस लौट रहे हैं। दिल्ली-नोएडा हाईवे जो अब तक बंद था वो फिर से शुरू हो गया है। दिल्ली पुलिस भी यहां से लौट रही है।

पश्चिमी यूपी से लाइव…

किसानों के भारत बंद में भारतीय किसान यूनियन भी शामिल है। लेकिन सुबह 12 बजे तक मुजफ्फरनगर जिले में बंद का असर नजर नहीं आ रहा है। सड़कों पर ट्रैफिक पहले की तरह चल रहा है। बाजार खुले हुए हैं। लोगों में चहल पहल है। लेकिन प्रदर्शन करते किसान नजर नहीं आ रहे हैं। किसान यूनियन के नेताओं ने हमें बताया था कि आज कम से कम 25 जगह प्रदर्शन होना है। मुझे अभी वो प्रदर्शन नहीं दिखा है। उत्तर प्रदेश के इस इलाके में किसानों में ऐसा रोष भी नहीं है जैसा हरियाणा और पंजाब के किसानों में हैं।

अब दोपहर 12 बजे के बाद धीरे-धीरे यहां भी किसान आंदोलन के लिए इकट्ठे हो रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के नेता बिल के विरोध में नारेबाजी कर रहे हैं।

मुजफ्फरनगर से सहारनपुर की ओर जाने वाले हाईवे पर जगह-जगह किसान सड़कों पर बैठे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण है। यहां किसानों ने हाईवे को जाम करने की कोशिश भी नहीं की।
मुजफ्फरनगर से सहारनपुर की ओर जाने वाले हाईवे पर जगह-जगह किसान सड़कों पर बैठे हैं और प्रदर्शन कर रहे हैं। यह प्रदर्शन पूरी तरह शांतिपूर्ण है। यहां किसानों ने हाईवे को जाम करने की कोशिश भी नहीं की।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का असर हरियाणा और पंजाब जैसा नहीं दिख रहा है, इसके जवाब में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष और महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे राकेश टिकैत कहते हैं, ‘जिस तरह हरियाणा और पंजाब में किसान मंडियों पर निर्भर है उस तरह यहां किसान मंडियों पर निर्भर नहीं है क्योंकि इस इलाके में अधिकतर किसान गन्ने की खेती करते हैं। उन्होंने कहा लेकिन यहां के किसान पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ है और किसानों के भारत बंद में हिस्सा ले रहे हैं।’

भारतीय किसान यूनियन ने मुजफ्फरनगर में प्रदर्शन शुरू कर दिया है। नेता माइक से किसानों को संबोधित कर रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन ने मुजफ्फरनगर में प्रदर्शन शुरू कर दिया है। नेता माइक से किसानों को संबोधित कर रहे हैं।

टिकैत जगह जगह घूम कर किसानों को संबोधित कर रहे हैं और उन्हें केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे विधायकों के बारे में बता रहे हैं। उनका कहना है कि इन विधायकों के क़ानून बनने के बाद मंडी व्यवस्था कमज़ोर हो जाएगी और ये किसानों के हित में नहीं होगा।

किसानों के साथ ही आम आदमी पार्टी के नेता भी यहां प्रोटेस्ट कर रहे हैं।
किसानों के साथ ही आम आदमी पार्टी के नेता भी यहां प्रोटेस्ट कर रहे हैं।

यहां पुलिस भी पूरी तरह मुस्तैद नजर आ रही है। जगह जगह पुलिस रूट डायवर्ट कर रही है ताकि आंदोलन का असर हाईवे की ट्रैफिक पर न हो। किसानों के साथ ही आम आदमी पार्टी ओर से भी यहां प्रोटेस्ट किया जा रहा है। पार्टी के जिला उपाध्यक्ष रोहन त्यागी का कहना है कि जब तक किसानों का संघर्ष चलेगा आम आदमी पार्टी उनके साथ रहेगी। दोपहर तीन बजे के बाद यहां भी किसानों की भीड़ न के बराबर रह गई। प्रदर्शन में शामिल किसान अपने घर लौट गए।

  • किसानों और विपक्षी पार्टियों का आरोप- सरकार के नए कानून एमएसपी का लाभ खत्म कर देंगे
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलटवार- जो कई दशक तक सत्ता में रहे वह किसानों से झूठ बोल रहे हैं

केंद्र सरकार खेती-किसानी के क्षेत्र में सुधार के लिए तीन विधेयक लाई है। इन विधेयकों को लोकसभा पारित कर चुकी है। वह विपक्षी पार्टियों पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगा रहे हैं। एनडीए की घटक पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी इस मुद्दे पर सरकार से नाराज है। हरसिमरत कौर बादल ने तो केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। किसानों और विपक्षी पार्टियों को एमएसपी खत्म होने का डर है।

क्या है एमएसपी या मिनिमम सपोर्ट प्राइज?

  • एमएसपी वह न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी गारंटेड मूल्य है जो किसानों को उनकी फसल पर मिलता है। भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो। इसके पीछे तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव का किसानों पर असर न पड़े। उन्हें न्यूनतम कीमत मिलती रहे।
  • सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी यानी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की सिफारिश पर एमएसपी तय करती है। यदि किसी फसल की बम्पर पैदावार हुई है तो उसकी बाजार में कीमतें कम होती है, तब एमएसपी उनके लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइज का काम करती है। यह एक तरह से कीमतों में गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पॉलिसी की तरह काम करती है।

इसकी जरूरत क्यों है और यह कब लागू हुई?

  • 1950 और 1960 के दशक में किसान परेशान थे। यदि किसी फसल का बम्पर उत्पादन होता था, तो उन्हें उसकी अच्छी कीमतें नहीं मिल पाती थी। इस वजह से किसान आंदोलन करने लगे थे। लागत तक नहीं निकल पाती थी। ऐसे में फूड मैनेजमेंट एक बड़ा संकट बन गया था। सरकार का कंट्रोल नहीं था।
  • 1964 में एलके झा के नेतृत्व में फूड-ग्रेन्स प्राइज कमेटी बनाई गई थी। झा कमेटी के सुझावों पर ही 1965 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की स्थापना हुई और एग्रीकल्चरल प्राइजेस कमीशन (एपीसी) बना।
  • इन दोनों संस्थाओं का काम था देश में खाद्य सुरक्षा का प्रशासन करने में मदद करना। एफसीआई वह एजेंसी है जो एमएसपी पर अनाज खरीदती है। उसे अपने गोदामों में स्टोर करती है। पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) के जरिये जनता तक अनाज को रियायती दरों पर पहुंचाती है।
  • पीडीएस के तहत देशभर में करीब पांच लाख उचित मूल्य दुकानें हैं जहां से लोगों को रियायती दरों पर अनाज बांटा जाता है। एपीसी का नाम 1985 में बदलकर सीएपीसी किया गया। यह कृषि से जुड़ी वस्तुओं की कीमतों को तय करने की नीति बनाने में सरकार की मदद करती है।

एमएसपी का किसानों को किस तरह लाभ हो रहा है?

  • खाद्य और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री रावसाहब दानवे पाटिल ने 18 सितंबर को राज्यसभा में बताया कि नौ सितंबर की स्थिति में रबी सीजन में गेहूं पर एमएसपी का लाभ लेने वाले 43.33 लाख किसान थे, यह पिछले साल के 35.57 लाख से करीब 22 प्रतिशत ज्यादा थे।
  • राज्यसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले पांच साल में एमएसपी का लाभ उठाने वाले गेहूं के किसानों की संख्या दोगुनी हुई है। 2016-17 में सरकार को एमएसपी पर गेहूं बेचने वाले किसानों की संख्या 20.46 लाख थी। अब इन किसानों की संख्या 112% ज्यादा है।
  • रबी सीजन में सरकार को गेहूं बेचने वाले किसानों में मध्यप्रदेश (15.93 लाख) सबसे आगे था। पंजाब (10.49 लाख), हरियाणा (7.80 लाख), उत्तरप्रदेश (6.63 लाख) और राजस्थान (2.19 लाख) इसके बाद थे। यह हैरानी वाली बात है कि कृषि कानूनों को लेकर मध्यप्रदेश में कोई आंदोलन नहीं हुआ। और तो और, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी मध्यप्रदेश से ही ताल्लुक रखते हैं।
  • खरीफ सीजन में एमएसपी पर धान बेचने वाले किसानों की संख्या 2018-19 के 96.93 लाख के मुकाबले बढ़कर 1.24 करोड़ हो गई यानी 28 प्रतिशत ज्यादा। खरीफ सीजन 2020-21 के लिए अब तक खरीद शुरू नहीं हुई है। 2015-16 के मुकाबले यह बढ़ोतरी 70% से ज्यादा है।

इस कानून से किसानों को मिलने वाले एमएसपी पर क्या असर होगा?

  • कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भास्कर संवाददाता धर्मेंद्र भदौरिया को दिए इंटरव्यू में साफ किया कि नए कानून से किसानों को खुले बाजार में अपनी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा। इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को अपनी उपज की बेहतर कीमत मिलेगी।
  • तोमर ने यह भी कहा कि मंडी के बाहर जो ट्रेड होगा, उस पर कोई भी टैक्स नहीं देना होगा। मार्केट में सुधार होगा, प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, बाजार सुधरेगा और किसान को भी वाजिब दाम मिलेगा। जब किसान को दो प्लेटफॉर्म मिलेंगे तो जहां ज्यादा दाम मिलेगा वह उसी को चुनेगा।
  • कृषि मंत्री ने कहा कि बिल ओपन ट्रेड को खोल रहा है। इस बिल का एमएसपी से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे भी एमएसपी एक्ट का हिस्सा नहीं है। एमएसपी प्रशासकीय निर्णय है यह किसानों के हित में है और यह हमेशा रहने वाला है।
  • स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के अनुरूप किसानों को लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर हम एमएसपी घोषित कर रहे हैं। रबी सीजन की एमएसपी घोषित कर दी थी। खरीद भी की। खरीफ सीजन की फसलों के लिए एमएसपी जल्द घोषित हो जाएगा। एमएसपी पर कोई शंका नहीं होना चाहिए।
  • शांताकुमार कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि देश में छह फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता था। इस पर तोमर ने कहा कि देश में 86% छोटा किसान है। उसका उत्पादन कम होता है और मंडी तक माल ले जाने का भाड़ा अधिक लगता है। इस वजह से उसे एमएसपी का फायदा नहीं मिलता। अब खुले बाजार में उसे मंडी तक जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

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